अमीबायसिस (Amoebiasis) ऐसी बीमारी है, जो अमीबा की एक प्रजाति के कारण होती है। खराब पानी और साफ-सफाई के अभाव में यह पेट में जगह बना लेती है। यह बीमारी बढ़ने पर खतरनाक हो सकती है।
अमीबायसिस को एंटअमीबायसिस भी कहते हैं। एंटअमीबा हिस्टोलिटिका एक माइक्रोआॅर्गेनिज्म है, जो अपना जीवन पैरासाइट (परजीवी) के रूप में बिताता है। इसी इंटेस्टाइनल प्रोटोजोआ पैरासाइट के कारण एमीबायसिस रोग होता है। ये माइक्रोस्कोपिक आॅर्गेनिज्म अमीबा की एक प्रजाति है, जो फाइलम प्रोटोजोआ के तहत आता है। चूंकि यह अमीबा की एक प्रजाति है, इसलिए इसके द्वारा जो रोग उत्पन्न किया जाता है, उसे अमीबायसिस कहते हैं।
यह एक प्रकार का संक्रमण है, जो सूक्ष्म परजीवी एंटअमीबा हिस्टोलीटिका द्वारा फैलता है। इस बीमारी का समय पर इलाज कराना बेहद जरूरी है, नहीं तो रोगी की जान भी जा सकती है। वर्तमान में ई. हिस्टोलीटिक के संक्रमण से पूरी दुनिया में करीब 45 करोड़ लोग ग्रस्त हैं। इस बीमारी के कारण हर वर्ष पूरी दुनिया में हजारों लोगों की मौत हो जाती है।
कारण :
अमीबिया रोग का क्या कारण है।?
अमीबियासिस का कारण प्रोटोजोआ परजीवी एंटामोइबा हिस्टोलिटिका द्वारा संक्रमण है। यह तब शुरू होता है जब कोई व्यक्ति दूषित पानी पीता है या सिस्टिक फॉर्म (संक्रामक चरण) से दूषित खाद्य पदार्थ खाता है, खाना परोसने वाले के दूषित हाथों से परोसे गए भोजन खाने अथवा अप्राकृतिक यौन संपर्क से आता है।
इस रोग के होने का प्रमुख कारण साफ-सफाई का अभाव होना है। दूषित भोजन, पानी और गंदी जगह मल-मूत्र त्यागने के कारण सूक्ष्म परजीवी ई. हिस्टोलीटिका के सिस्ट हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और इंटेस्टाइन यानी हमारी आंतों को संक्रमित कर देते हैं। इस संक्रमण को अमीबिक डायरिया या अमीबिक कोलाइटिस कहते हैं, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है जब ये परजीवी इंटेस्टाइनल वॉल यानी आंतों की दीवार में छेदकर रक्त प्रवाह में पहुंच जाते हैं। एक बार रक्त प्रवाह में पहुंचने के बाद ये परजीवी हमारे लिवर, हार्ट, लंग्स और ब्रेन कहीं भी पहुंच सकते हैं और वहां के टिश्यू को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं। इस कारण से उन अंगों में घाव बन सकते हैं।
लिवर के संक्रमण को अमीबिक लिवर एबसेसेस कहते हैं। इंटेस्टाइन के बाद सबसे ज्यादा ये लिवर को ही संक्रमित करते हैं। ई. हिस्टोलीटिका का संक्रमण हार्ट, लंग्स और ब्रेन में कम देखने को मिलता है।
लक्षण : अमीबायसिस के लक्षण के दिखाई देने में कुछ दिनों से लेकर हफ्तों तक का समय लग सकता है। फिर भी आमतौर पर इसके लक्षण दो से चार सप्ताह के भीतर दिखाई देने लगते हैं। इसके होने पर पेट में ऐंठन व दर्द होता है। संक्रमण होने पर रोगी को डायरिया और डिसेंट्री की शिकायत भी हो जाती है। इस संक्रमण के गंभीर रूप धारण करने पर शौच के साथ खून भी आने लगता है। जब अमीबा का जीवाणु या पैरासाइट लिवर में प्रवेश कर जाता है, तब पेट में दाहिनी तरफ ऊपर की ओर पसलियों के अंदर बहुत दर्द होता है और तेज बुखार हो जाता है। इस कारण से भूख कम हो जाती है और उल्टियां भी होने लगती हैं।
जांच : अमीबायसिस का पता लगाने के लिए रोगी के मल सैंपल की जांच की जाती है। मल सैंपल के अलावा डॉक्टर रोगी के लिवर फंक्शन की भी जांच करते हैं और पता लगाते हैं कि कहीं लिवर को कोई नुकसान तो नहीं पहुंचा है। अंदरूनी अंगों को हानि पहुंचने की संभावना पाए जाने पर रोगी का अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन किया जाता है। जरूरत पड़ने पर नीडल की सहायता से संक्रमण के कारण लिवर में होने वाले घाव की जांच की जाती है। लिवर में फोड़ा या सिस्ट कभी- कभी फटकर पेट, फेफड़ों और हृदय की झिल्ली (यानी पेरिकार्डियम) में चला जाता है और यह तकलीफ खतरनाक भी हो सकती है। डॉक्टर इंटेस्टाइन या कोलोन टिश्यू में परजीवी की उपस्थिति का पता लगाने के लिए कोलोनोस्कोपी भी करते हैं।
अमीबिया के लिए जोखिम कारक क्या हैं ?
जोखिम कारकों में शामिल हैं –
दूषित पानी पीना।
दूषित खाद्य पदार्थ खाना।
खाना परोसने वालों के साथ सीधा संपर्क, जिनके हाथ दूषित हैं।
अप्राकृतिक यौन व्यवहार।
दूषित चिकित्सा उपकरण।
कुपोषित।
कॉर्टिकोस्टेरॉइड के प्राप्तकर्ता।
गर्भावस्था।
यात्रा के दौरान खाने – पीने में शुद्धता के प्रति असावधानी।
उपचार : अमीबायसिस का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि रोगी को किस तरह का संक्रमण है। सामान्य संक्रमण होने पर डॉक्टर दस दिन की दवा देते हैं। अगर यह परजीवी लिवर में फोड़ा पैदा कर दे तो 15-20 दिन तक दवा दी जाती है। इसमें यदि पस पड़ जाए तो उसे सिरिंज की सहायता से निकाल लिया जाता है। कभी-कभी आंतों में अमीबिक अल्सर फट जाने से सारे पेट में संक्रमण फैल जाता है, और ऐसी अवस्था में सर्जरी करनी पड़ सकती है।
बचाव व रोकथाम : अमीबायसिस से बचाव के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है- टॉयलेट से आने और बच्चों के डाइपर बदलने के बाद गर्म पानी से हाथों को धोएं। टॉयलेट और टॉयलेट सीट की नियमित सफाई करें। टॉवल या फेसवाशर्स को शेयर करने से बचें।
उचित स्वच्छता अमीबिया से बचने की कुंजी है।
एक सामान्य नियम के रूप में शौच जाने के बाद और आवश्यकता अनुसार समय-समय पर साबुन और पानी से अच्छी तरह हाथ धोएं ।
यदि आप उन स्थानों की यात्रा कर रहे हैं, जहां यह संक्रमण आम है तो भोजन करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतें ।खाने से पहले फल और सब्जियां अच्छी तरह से धो लें । बोतलबंद पानी का उपयोग करें । बर्फ के टुकड़े या खुले पेय पदार्थों का उपयोग ना करें। दूध पनीर या अन्य ऐसे उत्पादों से बचें। सड़क विक्रेताओं द्वारा बेचे जाने वाले भोजन से बचें ।यदि आप किसी रेस्टोरेंट में खाना खा रहे हैं तो यह सुनिश्चित कर लें कि वहां पर्याप्त साफ-सफाई है तथा जो लोग खाना परोस रहे हैं, उनके हाथ ठीक से धुले हुए हैं ।
याद रखें कि यदि अमीबायोसिस का उपचार नहीं किया गया तो यह घातक सिद्ध हो सकता है। बेहतर है हम स्वच्छता एवं अन्य उपायों से इससे बचें।अमीबायसिस हमारी आंतों में कई वर्षों तक रह सकता है। जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (immune system) कम है, जरूरी नहीं है कि उनमें इसके लक्षण नजर आएं।
अमीबेसिस से सावधानी में ही बचाव है।

